Sunday, July 5, 2015

" वर्तमान दौर में नई पीढ़ी एवं पुरानी पीढ़ी के विचारो का प्रवाह "

                                                  "   वर्तमान दौर में नई पीढ़ी एवं पुरानी पीढ़ी के विचारो का प्रवाह "
                                        क्या वर्तमान दौर में  ऐसा देखा जा रहा है की वरिष्ठ  पीढ़ी  नई पीढ़ी  की
                     सम्भानाओ  को  सामान्तया  नकारती  है  ?
                   २.  यदि  ऐसा है तो   क्यों  है  ?
                   ३.  क्या नई पीढ़ी  वरिष्ठ पीढ़ी को व्यर्थ  समझकर  फेक देना चाहती है  ?  यदि ऐसा है तो
                         यह  क्यों , इसके पीछे  क्या कारण   हो सकते है  . ।
                                      कृपा  करके  अपने अमूल्य  विचारो  से अवगत  कराये.
                                                                                              ( B.S.Sharma )
                                                                                                                               

6 comments:

  1. साथियो
    शिष्टाचार सभ्य जीवन की प्रथम कसौटी है। नई पीढी
    का अपना एक पक्ष है।बुजुर्गो से उनकी मतभिन्नता
    बढते जा रही है। नयी पीढी अपने पथ पर चलने को स्वतंत्र है
    किन्तु क्या दुर्व्यवहार, असभ्यता और अशिष्टता, स्वतंत्र मत
    और स्वतंत्र जीवन पध्दति के लिए अनिवार्य नहीं। मतभेद
    रखते हुए भी हम माता-पिता गुरुजन, बुजुर्गो को आदर और
    सम्मान तो दे ही सकते हैं। आक्रोश, उत्तेजना, उदण्डता और
    किए हुए उपकारों को, विस्मृत करना नवीनता के गौरव-
    चिन्ह नहीं बन सकते। नई पीढी में जो उदण्डता बढ रही है,
    वह निर्माण नहीं विनाश कर रही है। सभी क्षेत्रों में
    उसका भयावह रूप देखने को मिल रहा है।
    नई पीढी में जो आवेग है, जो विद्रोह-भावना है, जो
    प्रश्नचिन्ह खडा करने की प्रवृत्ति है, जो शक्ति का उन्मेश
    है, वह निरर्थक है। उसे छोड देना चाहिए यह हमारा
    तात्पर्य नहीं। मतलब इतना ही है कि जो वर्तमान है, इसके
    समुचित उपयोग और विकास में पुरानी पीढी का भी
    योगदान है। उनके प्रति आदर और सम्मान करना अपना ही
    आदर और सम्मान हैं। शिष्टता, प्रत्येक व्यक्ति, वर्ग, समाज
    और कालका भूषण हैं। उसे समझने की कोशिश न करना
    मानवता का अपमान हैं।
    जय भृगवंश । जय भृगवंश । जय भृगवंश । जय भृगवंश ।

    ReplyDelete
  2. सम्मानीय शर्मा जी
    परिवर्तन संसार का नियम है,परंतु हम इस बात पर कतई सहमत नही है, कि नई पीढ़ी के बंधु, वरिष्ठ जनो को अपमानित करके अथवा नजरअंदाज करके अपने विचार वरिष्ठ जनो पर थोपे, नई पीढी को वरिष्ठ जनो के अनुभवो का लाभ लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए, यह जरुर है कि कुछ कमियाँ हर दौर मे हर काल मे हर पीढी से रह जाती है । कुछ कुरितियो के समाप्त होने मे समय लगता है, इसका यह अर्थ बिल्कुल नही है कि हमारे बुजुर्गो ने कुछ नही किया है । अपने समय मे अपने सामर्थ्य अनुसार उन्होंने भी समाज हित के लिए बहुत कुछ किया है । इसे नयी पीढी नजरअंदाज नही कर सकती,
    नवयुवक साथियो को बुजुर्गो को सम्मान देते हुए ओर साथ रखते हुए ही आगे बढना चाहिए । साथ ही वरिष्ठ जनो को भी चाहिए कि नयी पीढी को समय समय पर चेताने का प्रयास करते रहे, आवश्यक दिशा निर्देश देते रहे, हो सकता है । वे नवयुवको के समान दौड ना लगा सके परंतु उन्हे दौडना बंद भी नही करना चाहिए । ✔ जय भृगवंश ।

    ReplyDelete
  3. सम्मानीय शर्मा जी
    परिवर्तन संसार का नियम है,परंतु हम इस बात पर कतई सहमत नही है, कि नई पीढ़ी के बंधु, वरिष्ठ जनो को अपमानित करके अथवा नजरअंदाज करके अपने विचार वरिष्ठ जनो पर थोपे, नई पीढी को वरिष्ठ जनो के अनुभवो का लाभ लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए, यह जरुर है कि कुछ कमियाँ हर दौर मे हर काल मे हर पीढी से रह जाती है । कुछ कुरितियो के समाप्त होने मे समय लगता है, इसका यह अर्थ बिल्कुल नही है कि हमारे बुजुर्गो ने कुछ नही किया है । अपने समय मे अपने सामर्थ्य अनुसार उन्होंने भी समाज हित के लिए बहुत कुछ किया है । इसे नयी पीढी नजरअंदाज नही कर सकती,
    नवयुवक साथियो को बुजुर्गो को सम्मान देते हुए ओर साथ रखते हुए ही आगे बढना चाहिए । साथ ही वरिष्ठ जनो को भी चाहिए कि नयी पीढी को समय समय पर चेताने का प्रयास करते रहे, आवश्यक दिशा निर्देश देते रहे, हो सकता है । वे नवयुवको के समान दौड ना लगा सके परंतु उन्हे दौडना बंद भी नही करना चाहिए । ✔ जय भृगवंश ।

    ReplyDelete
  4. Young Generation be polite. You feel better. Pay respect than get respect . You will also be come on elder position and than you feel than WHAT IS THE TROUBLES OF ELDER MAN.

    ReplyDelete
  5. "भृगवंश की वेदना एवंवर्तमान"
    -------चुनौतियाँ--------
    सम्मानीय स्नेही स्वजाति बंधुऔ भृगवंशी ब्राह्मण समाज मे निरंतर परिवर्तन चक्र तीव्र गति से घूम रहा है।सामाजिक स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है।
    ऐसे में भृगवंशी बंधु एक विचित्र से झंझावात में फंसा हुआ है। बाह्म रूप से चारों और भौतिक एवं आर्थिक प्रगति दिखाई देती है, सुख- सुविधा के अनेकानेक साधनों का अंबार लगता जा रहा है, दिन-प्रतिदिन नए-नए सामाजिक परिवर्तन हो रहे है, पर आंतरिक दृष्टि से भृगुवंशी टुटता और बिखरता जा रहा है। उसका जाति माता के प्रति विश्वास, समाज के प्रति सद्भाव और सामाजिक जीवन के प्रति उल्लास धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। अब तो समाज में अधिकांशतः चारों और
    आपसी सौहार्द समरसता एवं सात्विकता के स्थान पर कुटिलता, और स्वार्थप्रथा ही दृष्टिगोचर पाते है।
    जो भृगु समाज कभी जगत्गुरू ज्योतिषाचार्य हुआ करता था, उसी भृगवंश मे सामाजिक,पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन में चतुर्दिक उदासी छाई हुई है।सामाजिक जीवन मूल्यों एवं सामाजिक आदर्शो के प्रति आस्था-निष्ठा
    की बात तो कोर्इ सोचता ही
    नहीं। वैचारिक शुन्यता और दुष्प्रवृत्तियों​ के चक्रव्यूह
    में फंसा हुआ दिशाहीन भृगवंश का लाल पतन की राह पर फिसलता जा रहा है।उसे संभालने और उचित मार्गदर्शन देने वालों का भी आभाव ही दिखाई पड़ता है। कुछ गिने-चुने संगठन, सामाजिक संस्थाएँ ही इस दिशा में सक्रिय है अन्यथा अधिकांश तो निजी स्वार्थ एवं पदलोलुप दृष्टिकोण से ही
    कार्यरत लगते है। ईमानदारी , मेहनत और सत्यनिष्ठा के साथ नि:स्वार्थ भाव से स्वेच्छापूर्वक समाज हित के कार्य करने वालों को लोग मुर्ख ही समझते है। उनके परिश्रम एवं भोलेपन का
    लाभ उठाकर वाहवाही लूटने वाले समाज के ठेकेदार
    सर्वत्र दिखाई देते है। समाज सेवा का क्षेत्र मे चारों और
    अवसरवादी,पदलोलुप, प्रवृति के लोग बहुतायत मे दिखाई देते हैं।
    त्याग,बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी ,
    श्रमशीलता का आजकल समाज मे सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है।आजकल कुछ लोगो के मन में
    तो निजी स्वार्थ व महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ ईर्ष्या , घृणा, बैर की भावनाएँ जड़ जमाए हुए है। ऐसी विकृत
    मानसिकता क चलते कुछ बंधु तो वैज्ञानिक प्रगति से प्राप्त सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का दुरूपयोग ही करता रहता है।
    फलत: उसका शरीर अंदर से खोखला होकर अनेकानेक रोगों का घर बनता जा रहा है। मनुष्य की इच्छाओं व कामनाओं
    की कोई सीमा नहीं है, धैर्य
    व संयम की मर्यादाएं टुट रही
    है, अहंकार व स्वार्थ का नशा हर समय सिर पर सवार रहता
    है। ऐसी स्थिति में क्या सामाजिक समरसता व सहयोग
    की भावना जीवित रह सकती
    है? सुख, शांति व आंनद के दर्शन हो सकते है? जहाँ चारों और
    धनबल और बाहुबल का नंगा नाच हो रहा हो,ओर अवसरवादी लोगो का बोलबाला हो, वह समाज क्या कभी वास्तविक प्रगति कर सकता है? इस पतन-पराभव का कारण खोजने का यदि हम सच्चे मन से प्रयास करें ता पता चलेगा कि सारी समस्याओं की जड़ पैसा है। सारा संसार ही अर्थ
    प्रधान हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति हर समय अधिक से अधिक
    धन कमाने की उधेड़बुन में लगा रहता है। इसके लिए
    अनीति, अनाचार, भ्रष्टाचार जैसे सभी साधनों का खुलेआम प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कमाए हुए धन के कारण
    ही समाज में मूल्यविहीन
    भोगवादी संस्कृति का अंधानुकरण और विलासिता का अमर्यादित आचरण सर्वत्र देखा जा सकता है। यह सब जानते समझते हुए भी आदमी पैसे के पीछे पागल हो रहा है।आज का युवा वर्ग ऐसे ही दुषित माहौल में जन्म लेता है और होश
    संभालते ही इस प्रकार की दुखद एवं चितांजनक सामाजिक परिस्थितियों से रूबरू होता है। आदर्शहीन समाज से उसे उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं मिलता और
    दिशाहीन समाज पद्धति उसे और अधिक भ्रमित करती रहती है। ऐसे दिगभ्रमित और वैचारिक शून्यता से ग्रस्त युवाओं पर पाश्चात्य अपसंस्कृति का आक्रमण कितनी सरलता से होता है, इसे हम प्रत्यक्ष देख
    ही रहे है।अतः युवा साथियो अवसरवादीयो का परित्याग करो ओर समाज के हित का सपना साकार करने का प्रयास करो ।जय भृगवंश ।
    पं नारायण गौशिल जयपुर ।
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  6. "भृगवंश की वेदना एवंवर्तमान"
    -------चुनौतियाँ--------
    सम्मानीय स्नेही स्वजाति बंधुऔ भृगवंशी ब्राह्मण समाज मे निरंतर परिवर्तन चक्र तीव्र गति से घूम रहा है।सामाजिक स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है।
    ऐसे में भृगवंशी बंधु एक विचित्र से झंझावात में फंसा हुआ है। बाह्म रूप से चारों और भौतिक एवं आर्थिक प्रगति दिखाई देती है, सुख- सुविधा के अनेकानेक साधनों का अंबार लगता जा रहा है, दिन-प्रतिदिन नए-नए सामाजिक परिवर्तन हो रहे है, पर आंतरिक दृष्टि से भृगुवंशी टुटता और बिखरता जा रहा है। उसका जाति माता के प्रति विश्वास, समाज के प्रति सद्भाव और सामाजिक जीवन के प्रति उल्लास धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। अब तो समाज में अधिकांशतः चारों और
    आपसी सौहार्द समरसता एवं सात्विकता के स्थान पर कुटिलता, और स्वार्थप्रथा ही दृष्टिगोचर पाते है।
    जो भृगु समाज कभी जगत्गुरू ज्योतिषाचार्य हुआ करता था, उसी भृगवंश मे सामाजिक,पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन में चतुर्दिक उदासी छाई हुई है।सामाजिक जीवन मूल्यों एवं सामाजिक आदर्शो के प्रति आस्था-निष्ठा
    की बात तो कोर्इ सोचता ही
    नहीं। वैचारिक शुन्यता और दुष्प्रवृत्तियों​ के चक्रव्यूह
    में फंसा हुआ दिशाहीन भृगवंश का लाल पतन की राह पर फिसलता जा रहा है।उसे संभालने और उचित मार्गदर्शन देने वालों का भी आभाव ही दिखाई पड़ता है। कुछ गिने-चुने संगठन, सामाजिक संस्थाएँ ही इस दिशा में सक्रिय है अन्यथा अधिकांश तो निजी स्वार्थ एवं पदलोलुप दृष्टिकोण से ही
    कार्यरत लगते है। ईमानदारी , मेहनत और सत्यनिष्ठा के साथ नि:स्वार्थ भाव से स्वेच्छापूर्वक समाज हित के कार्य करने वालों को लोग मुर्ख ही समझते है। उनके परिश्रम एवं भोलेपन का
    लाभ उठाकर वाहवाही लूटने वाले समाज के ठेकेदार
    सर्वत्र दिखाई देते है। समाज सेवा का क्षेत्र मे चारों और
    अवसरवादी,पदलोलुप, प्रवृति के लोग बहुतायत मे दिखाई देते हैं।
    त्याग,बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी ,
    श्रमशीलता का आजकल समाज मे सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है।आजकल कुछ लोगो के मन में
    तो निजी स्वार्थ व महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ ईर्ष्या , घृणा, बैर की भावनाएँ जड़ जमाए हुए है। ऐसी विकृत
    मानसिकता क चलते कुछ बंधु तो वैज्ञानिक प्रगति से प्राप्त सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का दुरूपयोग ही करता रहता है।
    फलत: उसका शरीर अंदर से खोखला होकर अनेकानेक रोगों का घर बनता जा रहा है। मनुष्य की इच्छाओं व कामनाओं
    की कोई सीमा नहीं है, धैर्य
    व संयम की मर्यादाएं टुट रही
    है, अहंकार व स्वार्थ का नशा हर समय सिर पर सवार रहता
    है। ऐसी स्थिति में क्या सामाजिक समरसता व सहयोग
    की भावना जीवित रह सकती
    है? सुख, शांति व आंनद के दर्शन हो सकते है? जहाँ चारों और
    धनबल और बाहुबल का नंगा नाच हो रहा हो,ओर अवसरवादी लोगो का बोलबाला हो, वह समाज क्या कभी वास्तविक प्रगति कर सकता है? इस पतन-पराभव का कारण खोजने का यदि हम सच्चे मन से प्रयास करें ता पता चलेगा कि सारी समस्याओं की जड़ पैसा है। सारा संसार ही अर्थ
    प्रधान हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति हर समय अधिक से अधिक
    धन कमाने की उधेड़बुन में लगा रहता है। इसके लिए
    अनीति, अनाचार, भ्रष्टाचार जैसे सभी साधनों का खुलेआम प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कमाए हुए धन के कारण
    ही समाज में मूल्यविहीन
    भोगवादी संस्कृति का अंधानुकरण और विलासिता का अमर्यादित आचरण सर्वत्र देखा जा सकता है। यह सब जानते समझते हुए भी आदमी पैसे के पीछे पागल हो रहा है।आज का युवा वर्ग ऐसे ही दुषित माहौल में जन्म लेता है और होश
    संभालते ही इस प्रकार की दुखद एवं चितांजनक सामाजिक परिस्थितियों से रूबरू होता है। आदर्शहीन समाज से उसे उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं मिलता और
    दिशाहीन समाज पद्धति उसे और अधिक भ्रमित करती रहती है। ऐसे दिगभ्रमित और वैचारिक शून्यता से ग्रस्त युवाओं पर पाश्चात्य अपसंस्कृति का आक्रमण कितनी सरलता से होता है, इसे हम प्रत्यक्ष देख
    ही रहे है।अतः युवा साथियो अवसरवादीयो का परित्याग करो ओर समाज के हित का सपना साकार करने का प्रयास करो ।जय भृगवंश ।
    पं नारायण गौशिल जयपुर ।
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete