::9:: 7th July; 2014::::
Delhi :::::::::
B.S.Sharma :::::::
(Rachnakar:::)
"आशा"
आशा के सहारे ही जीता है आदमी ;
आशा के सहारे ही कुछ कर दिखाता है आदमी ;
बचपन बिता आई जवानी और निराशा ने ली अंगडाई ;
डटे रहो आशा के दम पे आशा ही है हरजाई ;
आशा के सहारे ही ठोस इरादे बनाता है आदमी ;
आशा के सहारे ही ::::::::::::::::::::
चट्टानें भी गमो की ; आशा के सहारे टूट जाती है ;
धरा जो उगलती शोले सामने इसके ना ठहर पाती है ;
आशा के सहारे ही काँटों पर चल पाता है आदमी ;
आशा के सहारे ::::::::::::::::
तीर और तलवार क्या ,आशा के सहारे न ये ठहर पाते है ;
इरादा करती बुलन्द आशा ,महिमा जो इसकी जान जाते है ;
आशा के सहारे ही इरादे; बुलन्द ;कर पाता है आदमी ;
आशा के सहारे ही ::::::::::::
आती नहीं खुशबू कभी निराशा के फूल से ;
महक जा नही सकती कभी " आशा" के फूल से ;
आशा के ही फूल से शहीद हो जाता है आदमी :::::::
"आशा " के सहारे ही :::::::::::::::::::::::
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-
Delhi :::::::::
B.S.Sharma :::::::
(Rachnakar:::)
"आशा"
आशा के सहारे ही जीता है आदमी ;
आशा के सहारे ही कुछ कर दिखाता है आदमी ;
बचपन बिता आई जवानी और निराशा ने ली अंगडाई ;
डटे रहो आशा के दम पे आशा ही है हरजाई ;
आशा के सहारे ही ठोस इरादे बनाता है आदमी ;
आशा के सहारे ही ::::::::::::::::::::
चट्टानें भी गमो की ; आशा के सहारे टूट जाती है ;
धरा जो उगलती शोले सामने इसके ना ठहर पाती है ;
आशा के सहारे ही काँटों पर चल पाता है आदमी ;
आशा के सहारे ::::::::::::::::
तीर और तलवार क्या ,आशा के सहारे न ये ठहर पाते है ;
इरादा करती बुलन्द आशा ,महिमा जो इसकी जान जाते है ;
आशा के सहारे ही इरादे; बुलन्द ;कर पाता है आदमी ;
आशा के सहारे ही ::::::::::::
आती नहीं खुशबू कभी निराशा के फूल से ;
महक जा नही सकती कभी " आशा" के फूल से ;
आशा के ही फूल से शहीद हो जाता है आदमी :::::::
"आशा " के सहारे ही :::::::::::::::::::::::
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-
No comments:
Post a Comment