...33.. 13th June, 2014 ....
Delhi.......
B.S.Sharma ...
(Rachnakar )...
" मिलावटी गंगा "
ऐ भृगु -जन , समाज में तेरे ,
मिलावट की गंगा बहने लगी है ,
आया कैसा जमाना ,
जनता ये सब कहने लगी है ,
वो ही आज रहनुमां ,वो ही आज मेहरबाँ ,
अतीत के दामन में जिसके पेबन्द लगी है ,
ये भृगु -जन ::::::::
अच्छे भवरे सभी चरमराने लगे है ,
तितली विदेशी बे खौफ लाने लगे है ;
नए नए वर्णशंकरो की दुनियां चमकने लगी है ,
मिलावट की गंगा :::::::::
है मिलावट के राजा तो है बेखौफ प्रजा।,
संस्थाओ में मिलता जहाँ गुलामों को दर्जा ,
दीवारे भी सुनकर सब हँसने लगी है ,
मिलावट की गंगा ,:::::::::
अक्ल के पुजारी नही मीत कोई ,
बनते है राजा सारे नही रंक क़ोई ,
हर महफ़िल में घड़ियाल बजने लगे है ::::::
आया कैसा की ::::::::::
अपने सीने के घावों को छिपाते है लोग ,
ख़ुशी दूजे की गमगीन बनाते है लोग
छटा चाँद की यूँ घटने लगी है ,
आया कैसा जमाना ,:::::::::
है कोई गीत ऐसा कोई जो गाकर सुना दे ,
भवरों ,तितलियों के दिलों को देशी " बना दे ,
नैया तितलिओं की भी डगमगाने लगी है ,
आया कैसा जमाना ::::::::
तितलिओं को जरा अब सम्भलना ही होगा ,
"हक़" के लिए उनको बदलना ही होगा,
"कलम " गौड़ तेरी जो बदलने लगी है ,
आया कैसा जमाना :::::::::::::::
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Delhi.......
B.S.Sharma ...
(Rachnakar )...
" मिलावटी गंगा "
ऐ भृगु -जन , समाज में तेरे ,
मिलावट की गंगा बहने लगी है ,
आया कैसा जमाना ,
जनता ये सब कहने लगी है ,
वो ही आज रहनुमां ,वो ही आज मेहरबाँ ,
अतीत के दामन में जिसके पेबन्द लगी है ,
ये भृगु -जन ::::::::
अच्छे भवरे सभी चरमराने लगे है ,
तितली विदेशी बे खौफ लाने लगे है ;
नए नए वर्णशंकरो की दुनियां चमकने लगी है ,
मिलावट की गंगा :::::::::
है मिलावट के राजा तो है बेखौफ प्रजा।,
संस्थाओ में मिलता जहाँ गुलामों को दर्जा ,
दीवारे भी सुनकर सब हँसने लगी है ,
मिलावट की गंगा ,:::::::::
अक्ल के पुजारी नही मीत कोई ,
बनते है राजा सारे नही रंक क़ोई ,
हर महफ़िल में घड़ियाल बजने लगे है ::::::
आया कैसा की ::::::::::
अपने सीने के घावों को छिपाते है लोग ,
ख़ुशी दूजे की गमगीन बनाते है लोग
छटा चाँद की यूँ घटने लगी है ,
आया कैसा जमाना ,:::::::::
है कोई गीत ऐसा कोई जो गाकर सुना दे ,
भवरों ,तितलियों के दिलों को देशी " बना दे ,
नैया तितलिओं की भी डगमगाने लगी है ,
आया कैसा जमाना ::::::::
तितलिओं को जरा अब सम्भलना ही होगा ,
"हक़" के लिए उनको बदलना ही होगा,
"कलम " गौड़ तेरी जो बदलने लगी है ,
आया कैसा जमाना :::::::::::::::
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