:18: 8th June , 2014......
Delhi ..........
B.S.Sharma ..........
(Rachnakar )
" ज़िंदगी एक समुद्र है "
ज़िंदगी एक समुद्र है ;
जहां ज्वार भाटे भी आते है ,
खुशनसीब है वो चेहरे ,
जो इनके वेग से बचकर निकल जाते है ,
होते होंगे समुद्र भी कुछ, "खुसनसीब ",
जिसमें ज्वार-भाटा न आएं ;
कम से कम वो मौत रूपी तांडव से तो बच जाए ,
आना है तो ऐसा आये सभी को हरा भरा कर जाएं ,
न कोई समझा है , न कोई समझेगा ,
इस विधाता की तदबीर को ,
जहां समुद्र भी कलंकित होने लगा है।
धन धान्य की वर्षा ,करने वाला समुंद्र ,
मौत का तांडव करने लगा है ,
लगा देता है नर-कंकालो का ढ़ेर ,
छन भर के तांडव से,
मिटा देता है पेड़ और पोधो को ,
छन भर में,
देख कर ये सब पक्षी भी हड़ताल पर चले जाते है,
न कुछ खाते है न कुछ पीते है ,
रुक जाता है चहचाना चिड़यों का ,
मुर्ग़ा भी बाँग नही भरता ,
नही देख सकते ये पक्षी भी ,
वो सब मासूमियत का जनाजा ,
किसी ने ठीक ही कहा है ,
कभी कभी चाँद भी तो गर्दिश में आता है ,
वक़्त की मार और विधाता की नजर से
कोई बिड़ला ही बच पाता है।
ऐ गौड़ " खुशकिस्मत है वो जन ,
जो समुद्र के किनारे नही रहते ,
शायद उन पर विधाता मेहरवान है। . ..............
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