26,. 9th July...2014.....
Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar ).....
" क्यों विमुख है आज मानव- मानव से "
राम जाने वक़्त को क्या हो चला है ,
आज मानव,मानव से विमुख क्यों हो चला है,
सुखो का सवेरा लेकर ,
आती थी भोर की प्रथम किरण ,
चहचहाना पक्षियों का इधर उधर ,
मिलता था अच्छा शकून ,
मगर आज ये सब कुछ उलट हो चला है ,
राम जाने वक़्त :::::::
सजता था फूलों से धरती का आंचल ,
बनावट का नाम न था ,
फसल खलिहान की लहलहाती थी ,
मिलावट का कहीं काम न था ,
बनावट भी मिलावट से आज विमुख क्यों हो चला है ,
राम जाने वक़्त को :::::
आँखों में किसी के गमो के आंसू ,
विरला ही नजर आते थे ,
होठों पर प्रेम के मन्त्र गुनगुनाते थे ,
आज ये सब छल बनकर बह चला है ,
राम जाने वक़्त ::::::::::
कैसे हो भारत की धरती पर ऋषियों की वाणी का गुंजन ,
चकित है , भयभीत भी ,
यह सब देख ,विप्र भृगु-जन ,
दम्भ , अपहरण,दुष्टता का "रावण ",
जो बढ़ चला है ::::::::::::
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Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar ).....
" क्यों विमुख है आज मानव- मानव से "
राम जाने वक़्त को क्या हो चला है ,
आज मानव,मानव से विमुख क्यों हो चला है,
सुखो का सवेरा लेकर ,
आती थी भोर की प्रथम किरण ,
चहचहाना पक्षियों का इधर उधर ,
मिलता था अच्छा शकून ,
मगर आज ये सब कुछ उलट हो चला है ,
राम जाने वक़्त :::::::
सजता था फूलों से धरती का आंचल ,
बनावट का नाम न था ,
फसल खलिहान की लहलहाती थी ,
मिलावट का कहीं काम न था ,
बनावट भी मिलावट से आज विमुख क्यों हो चला है ,
राम जाने वक़्त को :::::
आँखों में किसी के गमो के आंसू ,
विरला ही नजर आते थे ,
होठों पर प्रेम के मन्त्र गुनगुनाते थे ,
आज ये सब छल बनकर बह चला है ,
राम जाने वक़्त ::::::::::
कैसे हो भारत की धरती पर ऋषियों की वाणी का गुंजन ,
चकित है , भयभीत भी ,
यह सब देख ,विप्र भृगु-जन ,
दम्भ , अपहरण,दुष्टता का "रावण ",
जो बढ़ चला है ::::::::::::
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