-17-
8th,June,.2014 .....
Delhi.........
B.S.Sharma.......
(Rachnakar)......
" आलोचक "
ऐ प्रभु ; मेरे समाज के ऐसे आलोचक हों ,
जिनका ह्रदय विशाल हो ,
हर तरह से खुशहाल हो.,
निड़र और निष्पक्ष हो ,
आलोचना से स्वार्थ की बू तक न आये ,
आलोचना के बाद काम करने का बीड़ा उठाएं ,
और समाज के उत्थान की की रूप रेखा बनाएं ,
और कुछ करके दिखाए।
ऐ समाज वालों उठो आँखे खोलो ,
और ,ऐसे आलोचकों से समाज को बचा लो,
जिनका आलोचना करना कर्म बन गया है ,
आलोचना ही खान-पान बन गया है ,
आलोचना ही दान और स्वप्न बन गया है ,
वक़्त है अभी से पहचान जाओ ,
ऐसे आलोचकों से बचो और समाज को बचाओ ,
आगे आकर ऐसी दूरदर्शिता दिखाओं ,
ताकि समाज विभाजित न हो ,
शाक्तिशाली बने , कहि अँधियारा न हो ,
घर घर दीपक जले ,
कोई भूखा न सोयें ,
दान देता न रोयें ,
तभी होगी भृगुवंशीय समाज की पहचान ,
समाज के लिए मर मिटे और ,
देश की खातिर दे , दे जान :::::::::::::::::::::::
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8th,June,.2014 .....
Delhi.........
B.S.Sharma.......
(Rachnakar)......
" आलोचक "
ऐ प्रभु ; मेरे समाज के ऐसे आलोचक हों ,
जिनका ह्रदय विशाल हो ,
हर तरह से खुशहाल हो.,
निड़र और निष्पक्ष हो ,
आलोचना से स्वार्थ की बू तक न आये ,
आलोचना के बाद काम करने का बीड़ा उठाएं ,
और समाज के उत्थान की की रूप रेखा बनाएं ,
और कुछ करके दिखाए।
ऐ समाज वालों उठो आँखे खोलो ,
और ,ऐसे आलोचकों से समाज को बचा लो,
जिनका आलोचना करना कर्म बन गया है ,
आलोचना ही खान-पान बन गया है ,
आलोचना ही दान और स्वप्न बन गया है ,
वक़्त है अभी से पहचान जाओ ,
ऐसे आलोचकों से बचो और समाज को बचाओ ,
आगे आकर ऐसी दूरदर्शिता दिखाओं ,
ताकि समाज विभाजित न हो ,
शाक्तिशाली बने , कहि अँधियारा न हो ,
घर घर दीपक जले ,
कोई भूखा न सोयें ,
दान देता न रोयें ,
तभी होगी भृगुवंशीय समाज की पहचान ,
समाज के लिए मर मिटे और ,
देश की खातिर दे , दे जान :::::::::::::::::::::::
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