41,.. 14th.,June..2014...
Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar)....
" प' अक्षर की महता "
"प : ने ब्रहमांड रचाया ,
"प " परमेश्वर कहलाया ,
"प " ने पिहू पिहू आवाज लगाई ,
"प " पपीहा कहलाया ,
जिसकी वाणी सभी को भाइ ,
"प " से जिसने प्यार जताया ,
वो दिल सभी का जीत लाया ,
"प " प्रेम से चककर चलाया "मन"
"प " प्रेमिका का जीत लाया
कितनी शक्ति है प" की ,
बात :प" की इतनी सी नही ,जो खत्म हो जाये,
"प" कुछ और भी है ,जिसका नाम "प"
"प" पड़ोसी भी है हमारा ,
"प" पडोसी को धिक्कारती है दुनियां ,
आंतकवादी कहकर पुकारती है दुनियां ,
"प " पड़ोसी से नफरत सी होने लगी है ,
मेरे हुक्मरानो को ,देश के नौजवानों को ,
"प" पड़ोसी की चाल को समझना होगा ,
"प" की तरह उसे प्यारा न समझो ,
"प" प्यार की संज्ञा न दो ,
"प" पपीहा समझने की भूल ना करो ,
वो कुछ और भी है ,
"प" वो प्रेत भी है ,उसे प्रेत ही समझो ,
प्रेत केवल भागता है दूर ,
जलती मशाल से,
"प" पैगाम मेरा उन सभी देशवाशियों के नाम,
मेरे नौजवानों के नाम ,
मेरे हुक्मरानो के नाम ,
उठानी होगी तुम्हे एक दिन ,
वो जलती मशाल ,
मिटा देना होगा जड़ से ,उस
"प" रूपी प्रेत को ,देर करोगे पछताना होगा,
"प" पश्चाताप की अग्नि में जल जाना होगा ,
लोट कर वही आना होगा ,जिसका
गौड़ " की कलम को डर है ,
छिपा रहा है "गौड़ " उस " प " रूपी अक्षर को,
जिसका आरम्भ भी "प" और
अन्त भी "प"::::::::::::::::::
Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar)....
" प' अक्षर की महता "
"प : ने ब्रहमांड रचाया ,
"प " परमेश्वर कहलाया ,
"प " ने पिहू पिहू आवाज लगाई ,
"प " पपीहा कहलाया ,
जिसकी वाणी सभी को भाइ ,
"प " से जिसने प्यार जताया ,
वो दिल सभी का जीत लाया ,
"प " प्रेम से चककर चलाया "मन"
"प " प्रेमिका का जीत लाया
कितनी शक्ति है प" की ,
बात :प" की इतनी सी नही ,जो खत्म हो जाये,
"प" कुछ और भी है ,जिसका नाम "प"
"प" पड़ोसी भी है हमारा ,
"प" पडोसी को धिक्कारती है दुनियां ,
आंतकवादी कहकर पुकारती है दुनियां ,
"प " पड़ोसी से नफरत सी होने लगी है ,
मेरे हुक्मरानो को ,देश के नौजवानों को ,
"प" पड़ोसी की चाल को समझना होगा ,
"प" की तरह उसे प्यारा न समझो ,
"प" प्यार की संज्ञा न दो ,
"प" पपीहा समझने की भूल ना करो ,
वो कुछ और भी है ,
"प" वो प्रेत भी है ,उसे प्रेत ही समझो ,
प्रेत केवल भागता है दूर ,
जलती मशाल से,
"प" पैगाम मेरा उन सभी देशवाशियों के नाम,
मेरे नौजवानों के नाम ,
मेरे हुक्मरानो के नाम ,
उठानी होगी तुम्हे एक दिन ,
वो जलती मशाल ,
मिटा देना होगा जड़ से ,उस
"प" रूपी प्रेत को ,देर करोगे पछताना होगा,
"प" पश्चाताप की अग्नि में जल जाना होगा ,
लोट कर वही आना होगा ,जिसका
गौड़ " की कलम को डर है ,
छिपा रहा है "गौड़ " उस " प " रूपी अक्षर को,
जिसका आरम्भ भी "प" और
अन्त भी "प"::::::::::::::::::
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