16th .June,2014..
Delhi........
B.S.Sharma....
" सामाजिक प्राणी "
समय के बदलते परिवेश में आज जो कुछ घटित हो रहा
है ,वह सर्वविदित है। किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए समाज एक
"Challange " के रूप में उभर कर दौड़ रहा है। समाज का स्वार्थी वर्ग मनुष्य
के सिद्धांतो की बखियां उखाड़ने में बिलकुल हिचकिचाहट महसूस नही करता ,
परन्तु व्यक्ति विषेश यह नही देख पाता की उसके दामन में कितने सुराख है ,
उन पर कितनी पैबंद लगी है। समय गतिशील है इसलिए मनुस्य के लिए यह
जरूरी हो गया है की वह दुःख और सुख दोनों का आकलन करे तो उचित होगा।
यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी की मनुष्य के विचारों के
आदान -प्रदान से ही "क्रिया " का जन्म होता है और लक्ष्य उभर कर सामने
आता है। प्राय देखा गया है की वर्तमान युग में लोग स्वार्थी बनते जा रहे है ,
निचा दिखाने की प्रवृति ज्यादा बढ़ चली है ,जहां इन दोनों का मिश्रण होने
लगता है वहां समाज के विद्युतीकरण में निश्चित ही टकराव,बिखराव और
लचीनेपन की बू आने लगती है। इन्ही मुख्य कारणों से समाज की
व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगते देखे गए है।
आज समाज को उन लोगो की जरूरत है जो आदरसवादी है,
और सिद्धांतों पर चलते है,लक्ष्य को असली जामा पहनाने में निष्पक्ष भूमिका
निभाने के पक्षधर होते है ,समर्पण की भावना हो और समर्पण की भावना पैदा
करें विखराव व् टकराव की सूरत में लचीलापन दिखाई न पड़े।
ऐसे व्यक्ति ही सामाजिक प्राणी के रूप में समाज के प्रमुख अंग कहे जा सकते है अन्यथा सभी अमीर और गरीब समाज की
मुख्य धारा से जुड़े हुए तो है ही। एक जगह कुछ लोग नारा दे रहे थे।
स्वार्थ एकता ज़िंदाबाद। ::::: ज़िंदाबाद :::::::
आदर्शवादी ::: मुर्दाबाद ::: मुर्दाबाद ::::::
इन्ही नारो के बीच में सामाजिक व्यवस्था चरमराने की आवाज
गूंजने लगी। आवाज आ रही थी ::::::
स्वार्थी गाड़ी को खेंचे जा रहे है ,
आदर्शवादी और आदर्शवादी बनते जा रहे है ;
क्योकि ? समय का पहिया गतिशील है।
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B.S.Sharma....
" सामाजिक प्राणी "
समय के बदलते परिवेश में आज जो कुछ घटित हो रहा
है ,वह सर्वविदित है। किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए समाज एक
"Challange " के रूप में उभर कर दौड़ रहा है। समाज का स्वार्थी वर्ग मनुष्य
के सिद्धांतो की बखियां उखाड़ने में बिलकुल हिचकिचाहट महसूस नही करता ,
परन्तु व्यक्ति विषेश यह नही देख पाता की उसके दामन में कितने सुराख है ,
उन पर कितनी पैबंद लगी है। समय गतिशील है इसलिए मनुस्य के लिए यह
जरूरी हो गया है की वह दुःख और सुख दोनों का आकलन करे तो उचित होगा।
यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी की मनुष्य के विचारों के
आदान -प्रदान से ही "क्रिया " का जन्म होता है और लक्ष्य उभर कर सामने
आता है। प्राय देखा गया है की वर्तमान युग में लोग स्वार्थी बनते जा रहे है ,
निचा दिखाने की प्रवृति ज्यादा बढ़ चली है ,जहां इन दोनों का मिश्रण होने
लगता है वहां समाज के विद्युतीकरण में निश्चित ही टकराव,बिखराव और
लचीनेपन की बू आने लगती है। इन्ही मुख्य कारणों से समाज की
व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगते देखे गए है।
आज समाज को उन लोगो की जरूरत है जो आदरसवादी है,
और सिद्धांतों पर चलते है,लक्ष्य को असली जामा पहनाने में निष्पक्ष भूमिका
निभाने के पक्षधर होते है ,समर्पण की भावना हो और समर्पण की भावना पैदा
करें विखराव व् टकराव की सूरत में लचीलापन दिखाई न पड़े।
ऐसे व्यक्ति ही सामाजिक प्राणी के रूप में समाज के प्रमुख अंग कहे जा सकते है अन्यथा सभी अमीर और गरीब समाज की
मुख्य धारा से जुड़े हुए तो है ही। एक जगह कुछ लोग नारा दे रहे थे।
स्वार्थ एकता ज़िंदाबाद। ::::: ज़िंदाबाद :::::::
आदर्शवादी ::: मुर्दाबाद ::: मुर्दाबाद ::::::
इन्ही नारो के बीच में सामाजिक व्यवस्था चरमराने की आवाज
गूंजने लगी। आवाज आ रही थी ::::::
स्वार्थी गाड़ी को खेंचे जा रहे है ,
आदर्शवादी और आदर्शवादी बनते जा रहे है ;
क्योकि ? समय का पहिया गतिशील है।
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