36... 13th , June, 2014...
Delhi......
B.S.Sharma....
(Rachnakar ).
" गुलिस्ता ":
आओ हम सब मिलकर आज एक गुलिस्तां बनाये ,
नजर ना लगे किसी की उसमें एक दीपक जलायें
गुलिस्तां हो सुंदर इतना महक उठे सारा समाज ,
मधुर वाणी हो गुंजन जिसकी एक दूजे को दे आवाज ,
प्यार लो और प्यार दो के बीज इसमें बोयें समाज ,
द्धेष का ना हो नाम जिसमें सब की हो बस एक आवाज ,
शुभ कर्मो का पौधा इसमें एक सुन्दर सा लगाएं ,
आओ हम सब मिलकर :::::::::::::::
हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक सब एक दाल के पंछी हम ,
क्या हरयाणा क्या यूपी क्या गंगा पार के हम और तुम ,
क्या दिल्ली और क्या गुजराती क्या भर्गु नही है हम और तुम ,
बेमतलब की बनी दूरियां आओं दूर करें आज सारे भर्म ,
संगठन का एक देके नारा ,आओ प्यार की धूम मचाये हम ,
आओ हम सब मिलकर ::::::::::::::
करें प्रतिज्ञा मिलकर सारे गुलिस्तां को चमकाना है,
समाज हमारा करे उन्नति एक ऐसा बीज लगाना है ,
शुभ कर्मो में रहे आस्था अंधकार को दूर भगाना है ,
मॉस, मदिरा का सेवन करना कहता बुरा जमाना है,
गुलिस्ता से हम इन चीजो को क्यों ना दूर भगाएं ,
आओ हम सब मिलकर :::::::::::
धन-धान्य और ऐश्वर्य की इसमें ही एक क्यारी हो ,
प्यार की जोत भी जलती रहे ना फ़ूट की कोई चिंगारी हो ,
घर घर में हो खुशहाली और ना कोई लाचारी हो ,
अहंकार का बीज रहे ना पौध सभी सदाचारी हो ,
समाज के सेवक " वीर सिपाही फिर गीत ख़ुशी के गए हम,
आओ हम सब मिलकर ::::::::::::::
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Delhi......
B.S.Sharma....
(Rachnakar ).
" गुलिस्ता ":
आओ हम सब मिलकर आज एक गुलिस्तां बनाये ,
नजर ना लगे किसी की उसमें एक दीपक जलायें
गुलिस्तां हो सुंदर इतना महक उठे सारा समाज ,
मधुर वाणी हो गुंजन जिसकी एक दूजे को दे आवाज ,
प्यार लो और प्यार दो के बीज इसमें बोयें समाज ,
द्धेष का ना हो नाम जिसमें सब की हो बस एक आवाज ,
शुभ कर्मो का पौधा इसमें एक सुन्दर सा लगाएं ,
आओ हम सब मिलकर :::::::::::::::
हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक सब एक दाल के पंछी हम ,
क्या हरयाणा क्या यूपी क्या गंगा पार के हम और तुम ,
क्या दिल्ली और क्या गुजराती क्या भर्गु नही है हम और तुम ,
बेमतलब की बनी दूरियां आओं दूर करें आज सारे भर्म ,
संगठन का एक देके नारा ,आओ प्यार की धूम मचाये हम ,
आओ हम सब मिलकर ::::::::::::::
करें प्रतिज्ञा मिलकर सारे गुलिस्तां को चमकाना है,
समाज हमारा करे उन्नति एक ऐसा बीज लगाना है ,
शुभ कर्मो में रहे आस्था अंधकार को दूर भगाना है ,
मॉस, मदिरा का सेवन करना कहता बुरा जमाना है,
गुलिस्ता से हम इन चीजो को क्यों ना दूर भगाएं ,
आओ हम सब मिलकर :::::::::::
धन-धान्य और ऐश्वर्य की इसमें ही एक क्यारी हो ,
प्यार की जोत भी जलती रहे ना फ़ूट की कोई चिंगारी हो ,
घर घर में हो खुशहाली और ना कोई लाचारी हो ,
अहंकार का बीज रहे ना पौध सभी सदाचारी हो ,
समाज के सेवक " वीर सिपाही फिर गीत ख़ुशी के गए हम,
आओ हम सब मिलकर ::::::::::::::
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बहुत खुब शर्मा जी, अदभुत पंक्तिया सामाजिक
ReplyDeleteएकजुटता के लिए एक एक शब्द को आत्मसात करना होगा, जय भृगुवंश् ।
जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं । वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमे स्वजाति का प्यार नही ।