...37... 13th . June, 2014....
Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar ).....
" समाज की फुलवारी "
गौर से देखा है हमने समाज के इस बगीचे में
जहां प्यार की सुगंध का नाम तक नहीँ ,
फूल तो बहुत खिले है बगिया में ,
मगर खुसबू का कहीं काम तक नही ,
बगीचे के पुराने कुछ पेड़ जिनका अनुभव किसी से छिपा नही ,
उनसे हमे जो मिला फिर भी कोई गिला नही ,
उनके भाषणों में "मै " की गुंजन ,वैसे मृदुभासी ,
दिलों में द्धेष की धड़कन ,ऊपर से ना कोई अकड़न,ना कोई सुकड़न ,
कहने में समाज सुधारक ,
देखने में फूल सूरजमुखी ,
गौर से सूँघो तो प्यार की खुसबू का कहीं नाम तक नहीं , ……………
बेचैन है बगीचे का माली,
बयां होती नही कथा ऐसी निराली ,
द्वारपालों का जमघट ,
न जाने कौन किधर ले जाये करवट ,
क्योकि;? कड़वाहट का बीज है बगीचे में जब तक ,
लाख कोशिश हो खुसबू आये ना तब तक ,
बीज लाइलाज है खुसबू का कहि काम तक नहीं। ………।
बगीचे में हथियार एक कैची है जब तक
,खुसबू लाना है मुश्किल बगीचे में तब तक ,
कैँची की चाल कोई समझा ना अब तक ,
काट डाले कभी भी ये जिन्दा है जब तक ,
इसका नाम भी कैची काम भी कैची ,
इसमें खुसबू का कहि काम तक नहीं। ……।
कड़वाहट को बगीचे से यदि हम भगा दे,
चाल कैची की छोड़े ,ध्यान सुकर्मों में लगा दें ,
देखते है बगीचा महके ना कैसे ,
खुसबू कागजे फूल आयें ना कैसे ,
खुसबू आएगी एकदम ,रुकने का काम तक नहीं। ………
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Delhi.....
B.S.Sharma.....
(Rachnakar ).....
" समाज की फुलवारी "
गौर से देखा है हमने समाज के इस बगीचे में
जहां प्यार की सुगंध का नाम तक नहीँ ,
फूल तो बहुत खिले है बगिया में ,
मगर खुसबू का कहीं काम तक नही ,
बगीचे के पुराने कुछ पेड़ जिनका अनुभव किसी से छिपा नही ,
उनसे हमे जो मिला फिर भी कोई गिला नही ,
उनके भाषणों में "मै " की गुंजन ,वैसे मृदुभासी ,
दिलों में द्धेष की धड़कन ,ऊपर से ना कोई अकड़न,ना कोई सुकड़न ,
कहने में समाज सुधारक ,
देखने में फूल सूरजमुखी ,
गौर से सूँघो तो प्यार की खुसबू का कहीं नाम तक नहीं , ……………
बेचैन है बगीचे का माली,
बयां होती नही कथा ऐसी निराली ,
द्वारपालों का जमघट ,
न जाने कौन किधर ले जाये करवट ,
क्योकि;? कड़वाहट का बीज है बगीचे में जब तक ,
लाख कोशिश हो खुसबू आये ना तब तक ,
बीज लाइलाज है खुसबू का कहि काम तक नहीं। ………।
बगीचे में हथियार एक कैची है जब तक
,खुसबू लाना है मुश्किल बगीचे में तब तक ,
कैँची की चाल कोई समझा ना अब तक ,
काट डाले कभी भी ये जिन्दा है जब तक ,
इसका नाम भी कैची काम भी कैची ,
इसमें खुसबू का कहि काम तक नहीं। ……।
कड़वाहट को बगीचे से यदि हम भगा दे,
चाल कैची की छोड़े ,ध्यान सुकर्मों में लगा दें ,
देखते है बगीचा महके ना कैसे ,
खुसबू कागजे फूल आयें ना कैसे ,
खुसबू आएगी एकदम ,रुकने का काम तक नहीं। ………
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